शुक्रवार, 1 दिसंबर 2017

नमस्कार। सर्दियों का मौसम कैसा बीत रहा है। कुछ लोगों को मजा आ रहा है। कुछ के लिए ठंडा ज़्यादा है। ठंडे के मौसम में गर्मियों की याद आती है ,और गर्मी के समय हमे सर्दियों का इंतेज़ार रहता है। यही ज़िन्दगी का सबसे कठिन पहलु है -हम सदा वही चाहते हैं जो नहीं है और उदास हो जाते हैं। जैसा की पिछले कई महीने में मैंने हार्वर्ड विश्वविद्यालय के प्रोफेसर बेन -शहर के लेख का जिक्र किया था जिसमे उन्होंने हमें खुशियाँ बढ़ाने के विषय में बताया था ;उसी सिलसिले को बरक़रार रखते हुए मैंने एक मित्र से व्हाट्स एप्प के माध्यम से मिला एक और लेख को पेश करूँगा जो कि दो भाई के एक गज़ब कहानी को पेश करता है।
इस लेख के लेखक हैं नताली वाल्तेरस जिन्होंने दो भाई -बर्ट और जॉन जेकब्स -की आत्मकहानी को एक छोटे से लेख में पेश किया है। इन दोनों भाई ने मिलकर एक १०० करोड़ की टी -शर्ट बनाने वाली कंपनी बनाई है जिसका नाम है -life is good -जिंदगी अच्छा है। सच में अगर आप गौर करें जिंदगी अच्छा है। केवल इस चिंता की जिम्मेवारी अपनी है। अगर हम सोचे जिंदगी अच्छी है। तो वह अच्छी है। नहीं तो सर्दियों में हम गर्मी मांगते रहेंगे और गर्मियों में सर्दी।
कैसे इन दोनों भाई ने life is good के बारे में सोचा ? इनका जन्म अमेरिका के एक गरीब परिवार में हुआ। ६ बच्चों में ये दोनों सबसे छोटे थे। बचपन में इनके माता -पिता का एक मोटर दुर्घटना में काफी चोट लगी। माँ के कई हड्डियाँ टूट गई और पिता ने अपना दहना हाथ खो दिया। पिताजी अपने हाथ को खोने के बाद बहुत ही चिरचिरे और गुस्से वाले हो गए। बात -बात पर गुस्सा होने लगे और ज़िन्दगी को अनिश्चयता के साथ जीने लगे। काफी कठिन परिस्थितियों के साथ इस परिवार को जूझना पड़ा। इस माहौल में भी इनकी माँ ने अपना विश्वास बरक़रार रखा कि ज़िन्दगी अच्छी है। हर रात डिनर के वक़्त हर बच्चे को यह बताना था कि उस दिन अच्छा क्या हुआ था। केवल इसी कारण दिन के अंत एक अदभुत पॉजिटिव एनर्जी का एहसास होता था -पुरे परिवार को। जॉन का मानना है कि यह दैनिक सिलसिला उनको एक पीड़ित इंसान की तरह महसूस करने से रोकता था -"आज यह नहीं हुआ ,यह नहीं मिला ,यह कठनाई हुई आज "-इन सब चिंता दूर हो जाते थे अपने रात में डिनर टेबल पर। जब कुछ भी नहीं था ,पूरी परिवार के पास उम्मीदें जरूर मौजूद थी।
उनकी माँ ने उन्हें कभी मायूस नहीं होने दिया। रसोई घर में खाना बनाते वक़्त गाना गाना ;बच्चोँ के साथ उनके पढाई को अभिनय के जरिए समझाना ;उनके साथ कविताएँ दोहराना -चाहे परिस्थिति कितना ही प्रतिकूल क्यों ना हो ने बच्चों को एक ज़बरदस्त सीख दिया -खुश रहना परिस्थितयों पर निर्भर नहीं करता है। "माँ ने कठिन समय को उम्मीद के साथ सामना करने को सिखाया। क्योंकि ज़िन्दगी अच्छा है। "
इसी अटूट विश्वास को दोनों भाई ने अपनी ज़िन्दगी का और बिज़नेस का मकसद बना लिया है। उनका कहना है कि उम्मीद ही जीने का सबसे शक्तिशाली सोच है। उनका मानना है कि ज़िन्दगी परफेक्ट नहीं है। ना ही ज़िन्दगी आसान है। परन्तु ज़िन्दगी अच्छा है।
जैसा कि उनकी माँ उनसे दिन में हुए अच्छे घटनाओं का ज़िक्र करवाती थी ; दोनों भाई भी अपने कर्मचारियों को मिलते वक़्त एक ही अनुरोध करते हैं -कुछ ऐसा बताओ जो की अच्छा हुआ है। इस सोच का परिणाम बेहतरीन है। "इसके कारन अच्छे विचार सामने आते हैं ;इन विचारों के जरिए प्रगति होती है ;प्रगति ही सफलता की नीव है ;और पूरी कम्पनी का फोकस सफलता पर है ना कि कठिनाईओं पर। "यही विश्वास है दोनों भाई का।
ज़िन्दगी बहुत खूबसूरत है ,क्योंकि आप एक अच्छे इंसान हो। यह मेरा विश्वास है। मिलेंगे नए साल। नया साल और आनंदमय हो। यही उम्मीद पर भरोसा रखता हूँ। और धन्यवाद करता हूँ मेरे दोस्त पीटर चित्तरंजन को इस तरह के प्रभावशाली लेख को शेयर करने के लिए।
क्या आप सहमत हैं दोनों भाई के विश्वास से ?जरूर अपना सोच ज़ाहिर कीजिए ,मेरे साथ ,फेसबुक के माध्यम से। उम्मीद रखता हूँ ,आप पर। 
नमस्कार। आशा है कि त्योहारों का मौसम अच्छा रहा आपके और अपनों के लिए। पिछले दो लेख में मैंने हार्वर्ड विश्वविद्यालय के प्रोफेसर बेन -शहर के सलाह का ज़िक्र किया है जिन्होंने ज़िन्दगी से और खुश होने के १४  सलाह दिए हैं। इस लेख में अंतिम चार सलाह का ज़िक्र करूँगा। उन पाठकों के लिए ,जिन्होंने पिछला दो लेख ना पढ़ा हो ,मैं प्रोफेसर का प्रथम दस  सलाह को पेश कर रहा हूँ।
आपके पास जो भी है उसके लिए ईश्वर का शुक्रगुज़ार रहो। शारीरिक एक्सरसाइज रोज जरूरी है। दिन का सबसे महत्वपूर्ण है ब्रेकफास्ट। assertive बनना सीखें। अभिज्ञता अर्जन करने के लिए पैसे निवेश करना आवश्यक है। कठिनाई को नज़र अंदाज़ ना करके जल्द से जल्द सामना करें -जितनी देर कीजिएगा उतनी तकलीफ होगी। अपने आस पास अपने खुशियों के समय का वातावरण तैयार कीजिए। अन्य लोगों के साथ अच्छे से पेश आईये और मुस्कुराइए। जूते ऐसा पहनिए ताकि आपके पैरों में दर्द ना हो ,अन्यथा आपके मूड पर बुरा प्रभाव रहेगा। रीढ़ की हड्डी सीधी रखें। आपको खुद पर ज़्यादा कॉन्फिडेंस मिलेगा। लोग आप पर ज़्यादा भरोसा करेंगे।
पेश है अंतिम चार सलाह। संगीत हमारी ज़िन्दगी का अहम् हिस्सा है। आप ऐसा किसी को जानते हो जो कि संगीत से नफरत करता है ? मैं मिला हूँ कुछ लोगों से जो कि संगीत से नफरत नहीं करता है लेकिन जिनमे संगीत का आनंद लेने का कोई दिलचस्पी नहीं है। शत प्रतिशत ऐसे लोग जिनसे मैं मिला हूँ अपनी ज़िन्दगी से दुखी हैं और उनको किसी चीज़ से ख़ुशी नहीं मिलती है। विज्ञानं कहता है कि गाना सुनते वक़्त हम अक्सर अपने साथ गुनगुनाते हैं। इस अपने आप के साथ गुनगुनाना एक अलग आनंद का अनुभव दिलाता है। संगीत दोस्त बनाने में भी बहुत मदत करता है। आप अकसर उन अजनबी से ज़्यादा करीब बन जाते हैं जिनका संगीत का चॉइस आपसे मिलता जुलता है। इसका तात्पर्य यह नहीं होता कि अगर मेरा म्यूजिक का टेस्ट आपसे अलग हो तो हमारी दोस्ती हो नहीं सकती। मेरा तो मानना है कि हम जितना अलग -अलग घराने का संगीत का आनंद उठा सकेंगे ,उतनी ही हमारी ज़िन्दगी में नएपन का अहसास होगा जो कि हमें और भी आनंद देगा।
आपका मूड आप क्या खातें हैं उस पर निर्भर करता है। हर तीन -चार घण्टे में थोड़ा -थोड़ा खाना लीजिए। इससे आपका ग्लूकोज़ लेवल बरक़रार रहेगा जो कि आपके मूड को ठीक रखेगा। मैदा और चीनी का कम इस्तेमाल कीजिए। यह भी ग्लूकोज़ बढ़ा देता है। ऐसा खाना लीजिए जो स्वास्थ के लिए फायदेमंद है। सब कुछ खाइये लेकिन संयम के साथ। तरह -तरह का खाना खाइये ताकि आप खाने से बोर ना हो जाए। ना बोर होना आनंद का कारन है।
खुद का ख्याल रखिए और अपने आप को अट्रैक्टिव महसूस कीजिये। रिसर्च के अनुसार ७० प्रतिशत लोग जो खुद में दिलचस्पी लेते हैं और अपने आप को आकर्षणीय मानते और महसूस करते हैं ; जिंदगी में खुश दिखते हैं। आकर्षणीयता के साथ आपके रूप का संबंध नही है। यह एक मानसिक स्टेट है। अगर आप गूगल के माध्यम से मेरी तसवीर को देखेंगे , तो आपको एक साधारण इंसान दिखेगा। परन्तु अगर आप मेरे चेहरे पर गौर कीजिएगा तो मुझमे एक कॉन्फिडेंस नज़र आएगा जो मेरा आकर्षण का कारन है। हम चेहरे के साथ जन्म लेते हैं ,लेकिन अपने चेहरे का प्रयोग हम पर निर्भर करता है।
अंत में ईश्वर पर विश्वास रखिए। उनके लिए कुछ भी नामुमकिन नहीं है। खुशियाँ एक रिमोट कण्ट्रोल के तरह है। हर बार हम खुशियां खो देते हैं ,हम उसे ढ़ूढ़ने में पागल हो जाते हैं। कई बार ऐसा होता है हमें यही पता नहीं होता है कि हम खुद खुशियों पर विराजमान है लेकिन ख़ुशी ढूंढ रहे हैं। ऐसा हुया है कभी आपके साथ ? कब होता है ऐसा ?जब हम अपनी ख़ुशी को नज़र अंदाज़ करके दूसरों की ख़ुशी पर ईर्ष्या करते हैं। दूर का घास हमेशा ज़्यादा हरा दिखता है।
धन्यवाद प्रोफेसर बेन -शहर , हमारे ज़िन्दगी को और ख़ुशी के साथ जीने में मदत करने के लिए। आप खुश रहे और दूसरों को ख़ुशी से रहने दें। अगर आप मेरे साथ फेसबुक के माध्यम से मुलाकात करेंगे तो हमें बेहद ख़ुशी होगी। इंतेज़ार करूंगा। 

मंगलवार, 3 अक्तूबर 2017

नमस्कार। आप सभी को विजया दशमी की शुभकामनाएँ। आशा रखता हूँ कि त्यौहारों का यह मौसम आपका अच्छा बीत रहा है। विजया दशमी बुरे पर अच्छे के जीत को दर्शाता है। मेरा विश्वास है कि अंत में अच्छाई की जीत होती है। पिछले महीने हमने हार्वर्ड के  प्रोफेसर बेन -शहर के पाँच मंत्रों का जिक्र किया था जो कि इंसान को और ज्यादा खुशियाँ दे सकता है। जिन्होंने पिछला लेख नहीं पढ़ा होगा उनके लिए एक बार फिर पाँच सन्देश, प्रोफेसर का -आपके पास जो भी है उसके लिए ईश्वर का शुक्रगुज़ार रहो। शारीरिक एक्सरसाइज रोज जरूरी है। दिन का सबसे महत्वपूर्ण है ब्रेकफास्ट। assertive बनना सीखें। अभिज्ञता अर्जन करने के लिए पैसे निवेश करना आवश्यक है।  इस लेख में और पाँच सुझाव का ज़िक्र करूँगा जो मैंने प्रोफेसर के विषय में लिखे एक व्हाटस एप्प मैसेज से सीखा है। यह लेख उस व्हाट्स एप्प मैसेज से अनुप्राणित है। मूल विचार जो प्रोफेसर बेन -शहर का है उस पर मैंने अपनी ज़िन्दगी के सीख से भी सवाँरा है।
ज़िन्दगी में कठिनाई आएँगी। उनका जल्द सामना करना जरूरी है। जितना आप कठिनाई से जूझने में देरी करोगे उतना ज्यादा दर्द आपको सहना पड़ेगा। रिसर्च यही बोलता है। जितना विलम्ब उतना टेँशन। हर हफ्ते के लिए छोटे टास्क लिस्ट्स बनाए और उसे ख़त्म कीजिए। इसी में मंगल है।
आपके चारो ओर ख़ुशी के याददाश्त से भर दें। अपने चाहने वालों की तसवीरें , पुरस्कार जो आपने जीते होंगे , खुशियों वाली उपहार। क्यों ऐसा करना जरूरी है ? किसी के भी ज़िन्दगी में गम से ज़्यादा खुशियाँ हैं। परन्तु हम अपना चिंता ज़्यादा गम पर करते हैं। खुशियों का आनंद नहीं ले पाते हैं। मन खुशियों से और खुश होता है। केवल गम के विषय में सोचकर नहीं।
हमेशा दूसरों के साथ अच्छा व्यवहार करें। पहली बार दिन में मिलते वक़्त विश करें। आपके मुस्कुराहट का जवाब मुस्कुराहट से मिलेगा। मुस्कुराने से एनर्जी बढ़ती है। और एनर्जी ही ज़िन्दगी का सबसे बड़ा सम्पद है। अक्सर हम किसके साथ मुस्कुरा कर बात करेंगे इसका एक मन ही मन चयन कर लेते हैं। इसके फलस्वरूप हम कम लोगों के साथ मुस्कुराते हैं। और यहीं खुद का एनर्जी कम कर लेते हैं।
डॉ वापनेर जो कि अमेरिकन ऑर्थोपेडिक्स एसोसिएशन  के प्रेसिडेंट हैं कहते हैं की हमारे मूड का निर्धारण करने का एक महत्वपूर्ण वजह है हमारे जूते। जूते पहनकर अगर कोई दर्द महसूस करें या हमारे चलने में कोई असुविधा हो तो हमारा मूड ख़राब हो जाता है। मैंने कभी भी इस विषय में इस तरह से नहीं सोचा था। लेकिन जब मैं अपनी ज़िन्दगी के सफर के साथ इस टिप्पणी को जोड़ूँ तो यह एकदम सही नज़र आता है। नए जूतें जब तक अपने पाँवों पर सेट नहीं हो जाते हैं ,मूड नहीं बनता है।
मुंशी प्रेमचंद का एक बेहतरीन लेख था -रीढ़ की हड्डी। अगर हम अपने रीढ़ की हड्डी को सीधा नहीं रख सकते हैं तो ज़िन्दगी में कॉन्फिडेंस का अभाव रहेगा और कॉन्फिडेंस के बिना मूड नहीं बनता। ज़िन्दगी का आधा से ज़्यादा मजा तो सेल्फ कॉन्फिडेंस देता है। इसके बिना जीना ही बेकार है। आपके चाल से अक्सर लोग आपके बारे में अपना धारणा बनाते हैं। अगर आप कॉंफिडेंट दिखें तो आपके आस पास के लोग भी आपको उसी तरीके और अंदाज़ से पेश आएँगे।
अगले महीने अंतिम चार टिप्पणियाँ प्रोफेसर के। तब तक खुश रहिए और दिवाली खुशियों के साथ बिताइए। ख्याल रखिए ज़िन्दगी से और बहुत कुछ  पाना है। ख़ुशियाँ हम सबके हातों में है। केवल उसे समझना पड़ेगा और प्रोफेसर के दिए गए टिप्पणियों को प्रयोग कर के और बढ़ाना है।





शुक्रवार, 29 सितंबर 2017

बारिश का प्रकोप हमारे देश के अलावा इस वक़्त अमेरिका में भी बहुत भयंकर है। काफी नुकसान पहुँचा है लोगों को और उनके संपत्ति को। जिन लोगों को असुविधा हुई है उनको अब महसूस होता है दुसरों पर क्या बीती होगी ऐसी परिस्थितयों में। हम अक्सर दूसरों के दुःख या कठिनाई को तब महसूस करते हैं जब हम खुद उस कठिनाई से गुजरते हैं।
हर इंसान खुश रहना चाहता है। हम कोशिश करते हैं कि हम वैसा सब कुछ करें जो कि हमें खुशियां दे। परन्तु क्या हम खुश हैं ? शायद नहीं। इसी कारण आज और अगले कई महीनो में मैं चर्चा करूँगा कि हम और ज्यादा कैसे खुश रह सकते हैं ? मैं बात करूँगा प्रोफेसर बेन शहर का जो कि विश्व के प्रसिद्द हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में पढ़ाते हैं how to learn to be happier ? आंकड़ो के मुताबिक हार्वर्ड विश्वविद्यालय में जितने लोग पढ़ने आते हैं , उनमे से २० प्रतिशत लोग प्रोफेसर शहर का यह पाठ्यक्रम में जरूर दाखिला लेते हैं। प्रोफेसर के मुताबिक उनका क्लास ख़ुशी ,आत्मसम्मान और मोटिवेशन पर केंद्रित है। उनका विश्वास है कि इसके कारन विद्यार्थिओं को सफलता और आनन्द पाने में सुविधा होती है। प्रोफेसर को लोगों ने  'happiness गुरु ' का भी उपाधि दिया है।
प्रोफेसर अपने ज़िन्दगी को सुधारने के लिए और ज़िन्दगी में पॉजिटिव प्रभाव डालने के लिए १४ उपाय का ज़िक्र किया है। इस लेख में मैं पहले पाँच  उपाय का ज़िक्र करूँगा।  बाकि आगे के लेखों में।

  1. आपके पास जो है , जितना भी है , उसके लिए पहले ईश्वर को धन्यवाद दीजिए। एक कागज पर उन १० चीजों को लिख लीजिए जो कि आपको आनंद देता है। उन चीजों पर ज्यादा समय बिताइये और नज़र डालिए। इसी में आपका आनन्द बढ़ेगा। 
  2. शारीरिक चर्चा अवश्य कीजिए -रिसर्च कहता है कि शारीरिक एक्सरसाइज आपका मूड बेहतर करता है। तीस मिनट का एक्सरसाइज दुःख और स्ट्रेस को घटाता है।  यह प्रमाणित है। 
  3. सुबह का नाश्ता जरूर कीजिए -कुछ लोग समय के अभाव के कारन या मोटापा घटाने के उद्देश्य से ब्रेकफास्ट नहीं करते हैं। यह गलत करते हैं। रिसर्च कहता है कि ब्रेकफास्ट आपको एनर्जी देता है जो आपको सोचने में मदत करता है और आपको अपने काम को सफलता के साथ करने में मदत करता है।
  4. assertive बनिए -चाहिए जो आप चाहते हैं। कहिए जो आप सोचते हैँ। assertive होने से आपका आत्मसम्मान बढ़ेगा। चुप रहने से या किसी चाहते हुए चीज का हिस्सा ना बन सकने पर आपको आपको उदासी महसूस होती है। और हम उम्मीद और हौसला खो देते हैं। 
  5. तजुर्बा बढ़ाने के लिए पैसे खर्च कीजिए -७५ प्रतिशत लोग जिन्होंने निवेश किया है सफर करने में ताकि नए जगह और लोगों से सीख सके या कोई नए विषय का अध्ध्यन करें ;उन्हें ज़िन्दगी से अधिक आनन्द मिला है। कुछ लोग ऐसे भी हैं जिन्हे चीज़ें खरीदने पर ज़्यादा आनंद महसूस हुआ है। 
काफी चीज़ें जिसका ज़िक्र प्रोफेसर ने किया है , हम करते हैं। प्रश्न जो हमें खुद से करना है कि हम अपना कितना समय इन चीज़ों पर देते हैं और कितना समय हम उन चीज़ों को देते हैं जिसके कारन हमें ख़ुशी नहीं मिलती है। पड़ोसी ने वही गाड़ी खरीदी है जो कि आपका सपना है। हम ईर्ष्या ज्यादा करते हैं नाकि खुश होते हैं उनकी सफलता पर। 
अगले महीने पाँच और उपाय प्रोफेसर के। तब तक केवल खुद का एक मूल्यांकन कीजिए आप assertive हैं या नहीं ?मेरा तजुर्बा कहता है कि हम अधिकतर लोग assertive नहीं है। बनना कठिन है। बन जाने पर ज़िन्दगी से अवश्य ज़्यादा आनंद मिलता है। कोशिश कीजिये। आप अपने आपको एक नए अंदाज़ से देखिएगा। यही ज़िन्दगी है। हर सुबह एक नई सुबह। खुद नए अंदाज़ में क्यों नहीं !

शुक्रवार, 11 अगस्त 2017

पिछले महीने में मैंने रिश्तों के विषय में चर्चा किया था। मेरा मूल सन्देश रिश्तों में एक दूसरे को पर्याप्त स्वाधीनता देना था। क्या अपने रिश्तों में स्वाधीनता का प्रयोग किया है मेरे लेख को पढ़ने के बाद ? फायदा दिख रहा है ? रिश्तें मजबूत बन रहें हैं ? मजबूत रिश्ते अक्सर इंसान को उदास करते हैं।
जैसा की मुझे। इस वक़्त। मेरा छोटा बेटा ग्रेजुएशन के लिए आज अमेरिका के लिए रवाना हो रहा है। घर पे उदासी है। इतना दूर जा रहा है। दोस्त और रिश्तेदार का कहना है -ग्रेजुएशन इंडिया में करना चाहिए था -उसके बाद विदेश में पढ़ना बेहतर होता -जैसा कि मेरे बड़े बेटे ने किया था।
क्यों उदास हूँ मैं ? ऐसे तो बेटा पढ़ाई लिखाई ,गिटार ,दोस्त लेकर व्यस्त ,मैं अपने काम और कई और चीज़ों को लेकर व्यस्त। कितना समय एक साथ गुजारते हम। दिन में एक घण्टा औसत में। बच्चे बड़े हो जाने पर अपना स्वतंत्रता चाहते हैं जिसका मैंने ज़िक्र किया था। और जो मैंने दिया है। रिश्तों का एक महत्वपूर्ण सीख है इस अनुभूति में- ज्यादा समय साथ में नहीं गुजारते हैं जब कोई पास है ,परन्तु दिल नहीं चाहता है कि वह दूर जाए। यह रिश्ते के मजबूती को दर्शाता है। ज़िन्दगी में कई लोगों के साथ रोज का मिलना -जुलना होता रहता है ,लेकिन वह अगर हमसे दूर हो जाएँ तो कुछ ज़्यादा फर्क नहीं पड़ता है। कई और लोग होते हैं -खासकर सच्चे दोस्त -जिनके साथ सालोँ से मुलाकात नहीं होती हैं ,लेकिन हमें पता रहता है ,कि वह हमारे लिए है ,कभी भी ,कहीं भी -ना मौजूद रहने पर भी ,दिल से करीब है। यही रिश्ते अति मूल्यवान हैं। इन्हे संवारना ज़िन्दगी के लिए ज़रूरी है।कभी -कभी इस तरह के गभीर रिश्ते हमें अँधा बना देते हैं। जिसके कारण हम अपने अपनों को कभी -कभी उनकी सपनों से वंचित करते हैं। कोई पाठक है जिनके अभिभावकों ने आपको घर से दूर जाने की इजाजत नहीं दी है ,पढ़ने के लिए ,आपके चाहते हुए भी। मैंने अपनी ज़िन्दगी में कई पिता को देखा है अपनी बिटिया को वंचित करते हुए ऐसी परिस्थितियों में। क्यों बच्चे अपने सपनो को न्योछावर करेंगे ,आपकी भावनाओं की खातिर। अगर कोई अभिभावक इस वक़्त मेरा यह लेख पढ़ रहें हैं ;मैं उनसे निवेदन करूँगा की बच्चों को उनके सपने को सच करने का मौका दें -रिश्तों का लिहाज़ तभी होता है।
इस लेख को लिखते वक़्त मुझे अपने माता -पिता की याद आ रही है। ज़रूर वह अपनी दुनिया से अपने नाति का मार्ग दर्शन कर रहें हैं। उनके आशीर्वाद के बिना कुछ संभव नहीं है। अगर वह इस दुनिया में होते तो गर्व से सबको बताते। एक विषय के बारे में मैं शत प्रतिशत कॉंफिडेंट हूँ -वह नाति को कभी भी हमसे इतना दूर पढ़ने जाने से नहीं रोकते। क्योंकि  उन्होंने ३७ साल पहले अपने इकलौते संतान को सोलह साल की नाजुक उम्र में पढ़ने के लिए बिहार के छोटे शहर से मद्रास जाने से नहीं रोका था। उन दिनों पोस्टकार्ड पर पत्र लिखने के अलावा योगायोग के साधन बहुत सीमित थे। इंडियन एयरलाइन्स के कुछ फ्लाइट हुआ करते थे ,बड़े शहरों के बीच ;ट्रंक -कॉल बुक करना पड़ता था ,फ़ोन पर बात करने के लिए। जमालपुर से मद्रास पहुँचने मे अड़तालीस घण्टे का समय लगता था। आज मैं जो कुछ भी हूँ ,अपने माता -पिता के निस्वार्थ निर्णय के कारण -अपने दिल और भावनाओं पर पत्थर रख कर मुझे मद्रास जाने का अनुमति देना। बाबा -माँ ,आज मैं महसूस कर रहा हूँ आपके भावनाओं को जब मैं खुद उन भावनाओं से गुज़र रहा हूँ। अभी तो टेक्नोलॉजी के कारण योगायोग के उपाय हमारे मुट्ठी में हैं। फिर भी मेरी उदासी आपके दिल में हो रही उथल -पुथल का एहसास दिला रही है जब मैंने घर छोड़ा था ३७ साल पहले। धन्यवाद आप दोनों को आपके निर्णय के लिए।
थोड़ा भावुक हो गया हूँ। पिछले दिनों मैं मैडम रीता बिबरा जी से बात कर रहा था। रीता जी कई स्कूल और कॉलेज को मैनेज करती है। मैं उनका फैन हूँ -उनके जीवन दर्शन के कारण। उनसे बात हो रही थी इस सन्दर्भ में। मैंने कहा कि हर इंसान अपने चुने हुए रास्ते पर सफर करता है। और अंत में जो होता है ,अच्छा ही होता है। रीता जी ने मेरी सोच ठीक कर दी। उन्होंने कहा -रास्ता हमने नहीं चुना है ;ऊपर वाले ने हमारे लिए चुना है। और उनके लिए हम सब एक हैं। धन्यवाद रीता जी मेरे जीवन का मार्ग दर्शन को नई दिशा देने के लिए। आपका मैं आभारी रहूँगा।
 इन दिनों रीता जी की तरह कई लोगों ने अपने सोच से मुझे प्रभावित किया है ,ज़िन्दगी को नए अंदाज़ में जीने के लिए। उन सबके विषय में लिखूँगा आगे के सफर में. साथ निभाईएगा हमारा ?


गुरुवार, 3 अगस्त 2017

नमस्कार।  कैसे हैं आप ?कैसा चल रहा है आपका ब्रैंड बिल्डिंग का प्रयास ?पिछले महीने में मैंने ब्रैंडिंग के CDE का ज़िक्र किया था और ब्रैंड क्रिएशन के विषय में विस्तृत बात चीत की थी। याद है आपको ? ब्रैंड क्रिएशन में पांच चीज़ों का ख्याल रखना परता है।

  • कोई भी ब्रैंड हर किसी के लिए नहीं होता है। 
  • ब्रैंड एक रिश्ता है।  जिसके साथ ब्रैंड रिश्ता जोड़ना चाहता है उसको रिश्ते से क्या मिलेगा ?
  • अपने ब्रैंड का परिचय या आइडेंटिटी क्या है ?
  • आपका ब्रैंड प्रॉमिस क्या है ?
  • One never gets a second chance to create the first impression .इसके लिए आपका कम्युनिकेशन और ग्रूमिंग महत्वपूर्ण है। 
आज हम चर्चा करेंगे ब्रैंड development का। आपने ऊपर बताई गई पांच बातों का निर्णय ले लिया है और अब आप तैयार हैं अपने ब्रैंड को आगे बढ़ाने के लिए। चूँकि ब्रैंड एक रिश्ता है जितने लोग आपके ब्रैंड से जुड़ेंगे उतना ही आपके ब्रैंड का डेवलपमेंट होगा। बात इतनी सहज है। इसके लिए आपको क्या करना पड़ेगा ?

कोका कोला को विश्व का सबसे मूल्यवान या वैल्युएबल ब्रैंड माना जाता है। एक मीडिया इंटरैक्शन में कोका कोला कंपनी के चेयरमैन ने  इस सफलता के पीछे एक सरल प्रयास का ज़िक्र किया था - उनकी कंपनी का ब्रैंड डेवलपमेंट का एकमात्र उपाय है अधिक से अधिक लोगों को कोका कोला पीने के लिए मोटिवेट करना।  जितने अधिक लोग कोका कोला पियेंगे उतना ही ब्रैंड वैल्यूएशन बढ़ेगा। 

इस कोका कोला के उदाहरण से मिलती है हमारी पहली सीख -keep it simple
 इस गतिमय ज़िंदगी के सफर में किसी के पास आपके ब्रैंड और ब्रैंड प्रॉमिस को समझने के लिए समय नहीं है। आपका  ब्रैंड क्या कर सकता है -उनके लिए जिनके साथ आपका ब्रैंड रिश्ता जोड़ना चाहता है -उनको यह समझने में कोई असुविधा नहीं होनी चाहिए। इसका एक बेहतरीन उदाहरण है - Google. Google के प्रतिष्ठाताओं ने यह समझा कि हर वक्ति को  यह पता है कि वह क्या ढूंढ रहा है -उसे यह नहीं मालूम ढूढ़ना कहाँ है !इसी का प्रॉमिस किया Google ने। कुछ भी ढूढ़ना हो -Google करो !
दूसरी सीख Google से है -जो वादा किया निभाओ , लोग तुम्हारे ब्रैंड की पब्लिसिटी खुद करेंगे। Google के विषय में आपने पहली बार कैसे जाना ?शायद आपको याद भी नहीं होगा। जरूर किसी से सुना होगा जिसने आपसे पहले गूगल को एक्सपीरियंस किया होगा। आप अपने कर्तव्यों से अपना ब्रैंड बनाते हो। अपने पड़ोस में जरूर कोई ऐसा इंसान है  जिस  पर लोगों का आस्था होगा किसी भी प्रकार के मदत के लिए। यही उस व्यक्ति का ब्रैंड आइडेंटिटी और प्रॉमिस है। आपने यह भी देखा होगा कि इस व्यक्ति से कोई भी बिना किसी झिझक के सहायता मांगता है। क्यों ? क्योंकि यह व्यक्ति कभी भी ,कहीं भी मदत करने के लिए तत्पर है। गूगल की तरह। इसी से मिलती है हमारी तीसरी सीख
कंसिस्टेंसी परफॉरमेंस का -ज़रा सोचिये -आपके किसी मित्र ने आपके शहर के किसी रेस्टोरेंट में खाना खाकर उसकी काफी प्रशंषा की और आप अपने परिवार के साथ उस रेस्टोरेंट में खाने के लिए गए। उस दिन किसी कारण रेस्टोरेंट का हर खाना खराब रहा। क्या आप फिर वहाँ जाओगे ? खुद तो नहीं जाओगे ;अपने परिचित लोगों को वहाँ जाने से रोकोगे। कोई इंसान इन्कन्सीस्टेन्ट परफ़ॉर्मर के साथ रिश्ता जोड़ना नहीं चाहता है -भरोसा नहीं मिलता है। क्रिकेट में सचिन तेंडुलकर क्यों इतना बड़ा ब्रैंड है -क्योंकि १२० करोड़ भारत वासिओं का उन पर आस्था है। जो क्रिकेटर ने जितनी कंसिस्टेंसी से परफॉर्म किया है ;उतना ही बड़ा ब्रैंड बना है। एक और ब्रैंड है राहुल द्रविड़।
हमारी अगली सीख राहुल द्रविड़ से है -बदलते हुए  ज़रूरतों के साथ अपने ब्रैंड को भी बदलना पड़ेगा। 
आपको याद होगा उनके कैरियर के शुरुआत में राहुल द्रविड़ को  वन डे क्रिकेट के लिए अनसूटेबल माना जाता था। १९९९ के पहले उन्हें भारत के एक दिवसीय टीम से बाहर रखा गया था। उन्होंने कड़ी मेहनत की ;टीम में वापसी की और इतना ही नहीं; इंग्लैंड में खेले गए वर्ल्ड कप टूर्नामेंट के सर्वाधिक रन स्कोरर भी बने। कुछ दिनों पहले आपने उनकी सफलता IPL में भी देखी।
इसी से हमारी आखरी सीख आती है -आपका ब्रैंड ambition क्या है ?आप अपने ब्रैंड को किस मंज़िल पर ले जाना चाहते हो? हर गंतव्य के साथ आपको यह भी निर्धारित करना पड़ेगा कि आप कितने समय में और कैसे अपनी मंज़िल तक पहुचेंगे। कुछ इस तरह जैसे आप अपने घर  से रेलवे स्टेशन पहुँचते हो ट्रेन पकड़ने के लिए।
ब्रैंड एम्बिशन के उदाहरण स्वरुप मैं एक व्यक्तिगत अनुभव का ज़िक्र करना चाहता हूँ। पिछले सप्ताह मैं काम के सिलसिले में मुंबई गया था। वहाँ मैंने एयरपोर्ट से शहर तक का सफर 'प्रियदर्शिनी -वोमन पॉवर' टैक्सी में किया। वाहन चालक सनोवर नाम की एक महिला थी। सनोवर दिन में टैक्सी चलाती है और रात में अपने दो बच्चो और पति के लिए घर में खाना बनाना ,बच्चों को पढ़ाना और घर की और सब काम करती है। सनोवर से बात करने पर उन्होंने बताया कि बचपन से ही उनको गाड़ियों में बहुत दिलचस्पी थी और एक दिन गाड़ी चलाने का सपना देखती थी। एक गरीब परिवार के सदस्य होने की वजह से  कई लोगों ने उनको अपने इस सपने को भूल जाने कि सलाह दी. क्योंकि उनका सपना सार्थक होने का  संभावना काफी कम था । सनोवर ने हार नहीं मानी।
सनोवर ने गाड़ी चलाने और सेल्फ डिफेन्स का तालिम लिया जो कि 'वोमन पॉवर' ड्राइवर बनने का क्राइटेरिया था। उनकी सफलता पर मुबारक़ देने पर उन्होंने पूरा श्रेय अपने पति और बच्चों को दिया जिनके समर्थन के बिना यह संभव नहीं हो पाता ।
मेरे लिए सनोवर एक ब्रैंड का उत्कृष्ट मिसाल है। यह प्रमाण करती है कि सपने के साथ अपनों का साथ हो और सफलता पाने का पैशन हो तो कुछ भी हो सकता है।
क्या आप प्रेरित हैं अपने ब्रैंड क़ो आगे बढ़ाने का ?
नए साल संकल्प बनाने  का सर्वश्रेष्ठ अवसर माना जाता है। अगले साल आप अपने ब्रैंड को किस दिशा में आगे बढ़ाना चाहते हैं तय कर लीजिये। मंज़िल की ओर यात्रा शुरू करने का प्लानिंग इन कुछ दिनों में ही करना पड़ेगा। आपकी यात्रा सफल हो -यही हमारी शुभकामना है आपके लिए, नए साल का।

नमस्कार। नया साल मुबारक हो आपको और आपके चाहने वालों को। इन  चार दिनों में आपने क्या कुछ ऐसे लोगों के साथ सम्पर्क स्थापित किया जिनके साथ आपका वार्तालाप किसी ऐसे अवसर पर होता है जैसे कि कोई त्योहार या नया साल ?क्यों हम ऐसा करते हैं ? क्योंकि हम अपना रिश्ता ऐसे लोगों के साथ बरकरार रखना चाहते हैं। ताकि आपका ब्रैंड उनके दिमाग में ताज़ा रहे।
पिछले दो महीनों में मैंने आपसे ब्रैंड creation और development का ज़िक्र किया था। आज मैं आपके साथ ब्रैंड engagement के विषय में चर्चा करूँगा।
ब्रैंड एक रिश्ता है चॉइस का। हमने ब्रैंड को इसी तरह से समझा है। खुद को एक ब्रैंड के हैसियत से आगे बढ़ाने के लिए अपने चुने हुए 'सर्कल ऑफ़ इन्फ्लुएंस' में मौजूद लोगों को अपने ब्रैंड में इंटरेस्टेड रखना अति आवश्यक  है। इसे हम ब्रैंड engagement कहते हैं। एक सत्य का ख्याल सदा रखियेगा -आपका ब्रैंड लोगों के दिल में तब तक विराज करेगा जब तक आपका ब्रैंड उनके लिए relevant या तात्पर्य पूर्ण है।
अपने ब्रैंड engagement के लिए अंग्रेजी के पाँच vowels - a ,e ,i ,o ,u -का प्रयोग कीजिये। आगे विस्तार में।
A - Accessibility- जिनसे हम रिश्ता बनाना चाहते हैं उनको ज़रुरत के समय ना मिलने पर हम निराश हो जाते हैं। एक दो बार ना मिलने पर हम रिश्ता बरक़रार रखने का प्रयास छोड़ देते हैं। यही है आपके ब्रैंड का accessibility. आपके शहर में ज़रूर कोई ऐसा डॉक्टर होगा जिसको हर कोई दिखाना चाहता है लेकिन महीनो तक अपॉइंटमेंट नहीं मिलता है। क्या आप उनके लिए इंतज़ार करते हैं या विकल्प ढूढ़ते हैं ? Accessibility के कारण किसी  दूसरे  डॉक्टर को अपना ब्रैंड बनाने में सहायता मिलता है।
E-Evolve- समय के साथ अपने ब्रैंड को परिवर्तन करना अपने ब्रैंड के अस्तित्व का मूल मंत्र है। ज़माना और उसकी ज़रूरतें बहुत तेज़ी से बदल रही हैं। अपना ब्रैंड relevance बरक़रार रखने के लिए यह आपकी मजबूरी है। Nokia एक समय हमारे देश का सर्वाधिक बिकने वाला मोबाइल हैंडसेट हुआ करता था। कहाँ है अब वो ? उसने बदलते हुए ज़रुरत को समझने में नासमझी की जिसके कारण लोगों ने Nokia के साथ रिश्ता तोड़ दिया।
I -Innovation -आप जितना relevant innovation कर पाओगे उतना ही लोग आपके साथ जुड़े रहेंगे। यही लोग और भी लोगों को आपके ब्रैंड के साथ जुड़ने के लिए प्रोत्साहित करेंगे। Apple इसका एक उत्कृष्ट उदाहरण है। IPL क्रिकेट के लिए एक ऐसा ही innovation है। हमारे प्रधान मंत्री का रेडियो प्रोग्राम -मन की बात -एक बेहतरीन प्रयास है।
O-Openness-अगर आपके ब्रैंड को आगे बढ़ाना है तो आपको समालोचना का समुख्खिन होना पड़ेगा। लोग प्रशंषा के साथ निंदा भी करेंगे। आप निंदा को किसी भी हालत में नज़रअंदाज़ नहीं कर सकते हैं। कहा जाता है कि Oberoi होटेल्स के प्रतिष्ठाता ग्राहक के हर नेगेटिव मंतव्य का विश्लेषण खुद करते हैं और उसका समाधान ढूढ़ते हैं। उनका मानना है कि एक ग्राहक जिसने मेहनत किया है उनको फीडबैक देने का असल में और ९९९ ग्राहकों का प्रतिनिधित्व कर रहा जिन्होंने फीडबैक देने का मेहनत नहीं किया है।
U-Unlearn-कभी -कभी हम अपने नॉलेज और तजुर्बे का गुलाम बन जाते हैं। फलस्वरूप हम अपने आप को बदल नहीं पाते हैं। मैंने कई युवा को एक गलती करते हुए अक्सर देखा है -कॉलेज के बाद नौकरी करते समय खुद को ना बदलना। कई चीज़ें हम कैंपस में करते हैं जो कि हम ऑफिस में नहीं कर सकते हैं या हमें उसी चीज़ को नए अंदाज़ में करना सीखना परता है -जो आसानी से कर पाते हैं उनका ब्रैंड ऑफिस में जल्दी बनता है।
आखिर ब्रैंड एक रिश्ता है और आपको लोगों को सर्वदा वजह देना पड़ेगा आपके साथ रिश्ता बनाये रखने का -जितना आप engagement बढ़ा सकिएगा उतना ही आपका ब्रैंड मजबूत बनता जायेगा। और मजबूती ही आपके ब्रैंड का आयु निर्णय करेगा।
कैसा लगा आपको ब्रैंड के C-D-E के विशय में जानकार  ? मुझे Facebook पर ज़रूर लिखिए आपके बहुमूल्य सुझाव के साथ।
 अगले महीने से मैं आपके साथ कम्युनिकेशन के विषय में चर्चा करूंगा जो किसी ब्रैंड के लिए एक महत्वपूर्ण कला है -ब्रैंड बनाने और आगे बढ़ाने के लिए।
२०१६ आपके ब्रैंड के लिए मंगलमय और आनंदमय हो-यही मेरी शुभकामना है। मिलते रहेंगे।
नमस्कार। कैसा लग रहा है गर्मी का यह मौसम। स्कूल की छुट्टियाँ , आम का आनंद और गर्मी के कारन पसीने का अत्याचार। इस मौसम में शुद्ध ठंडे पानी का कोई विकल्प नहीं है। अधिकतर लोग दोपहर में धूप से और किसी -किसी शहर में गर्म लू से बचने के लिए घर या ऑफिस के बाहर नहीं निकलते हैं। तब तक, जब तक धूप में निकलना अति आवश्यक ना हो जाए।
इसी गर्मी के मौसम एक शनिवार आपका बॉस आपको रविवार के दिन दोपहर एक बजे ऑफिस में एक मीटिंग के लिए बुलाता है। आपको पता है कि मीटिंग का विषय ऐसा महत्वपूर्ण नहीं है कि आप इतनी गर्मी में छुट्टी के दिन, घर से एक घंटे का सफर तय करके ऑफिस पहुँचे। केवल यही नहीं। आपने अपने परिवार के साथ दोपहर तीन बजे के शो में घर के पास सिनेमा हॉल में नई फिल्म देखने का प्लान बनाया है। वातानुकूलित हॉल का सुकून और नई फिल्म का आनंद। रविवार ऐसा ही होना चाहिए। सब प्लानिंग पर बॉस का पानी फेर देना। क्या करेंगे आप ? इंक्रीमेंट, प्रोमोशन और कैरियर तीनों बॉस पर निर्भर करता है। ज़िंदगी में कभी ऐसी दुविधा हुई है ? बीच में आप और एक कठिन निर्णय -एक को 'हाँ ' तो दूसरा नाराज़।
आप इस परिस्थिति में क्या कर सकते हैं ? क्या सोच रहें हैं ? बॉस , कैरियर या परिवार ? या बॉस और परिवार , दोनों ? कम्युनिकेशन का यह सबसे कठिन चुनौती है। आज इसी का चर्चा करेंगे।
आप शायद मेरे साथ सहमत होंगे कि हर इंसान को माँगने का हक़ है तो किसी की माँग को नकारने का अधिकार भी है। आपके बॉस के पास आपको छुट्टी के दिन काम पे बुलाने का जैसा अधिकार है , आपको छुट्टी के दिन परिवार के साथ दोपहर में फिल्म देखने का अधिकार भी है। किसके अधिकार का आप इज्जत करेंगे -आपके खुद का या दूसरे इंसान का ? इसी पर निर्भर करता है , आपका कम्युनिकेशन और उस कम्युनिकेशन पर आपका रिश्ता। और रिश्ता क्या बनाता है ? आपका ब्रैंड।
तीन संभावनाएं आपके सम्मुख है। आप अपने बॉस के अधिकार को अपने अधिकार से ज़्यादा महत्व दो और रविवार के दिन दोपहर में ऑफिस पहुँच जाओ। यह आपका पैसिव कम्युनिकेशन होगा। ज़रा सोचिये। क्या आप खुद खुश होंगे ? कहाँ वातानुकूलित सिनेमा हॉल का सुकून के जगह  गर्मी में एक घंटे का सफर। क्या आपके परिवार वाले खुश होंगे ? परिवार को किए हुए वादे को ना निभाने का मानसिक तनाव क्या आपको काम करने में मदत करेगा ? हर्गिज़ नहीं।  आपके काम से क्या बॉस खुश होगा ? देखिये आपके पैसिव कम्युनिकेशन के कारण हर इंसान नाखुश है -बॉस , आपका परिवार और आप खुद। आपका अपने बॉस और परिवार के साथ रिश्ता बेहतर होगा या बदतर ? और आपका ब्रैंड ?
दूसरा उपाय है कि आप अपने अधिकार को बॉस के अधिकार से अधिक महत्व दो और रविवार को ऑफिस जाने से इंकार कर दो। यह एग्रेसिव कम्युनिकेशन का मिसाल होगा। क्या  बॉस खुश होगा ? आप चैन के साथ फिल्म का आनंद ले सकोगे ?
तीसरा संभावना कम्युनिकेशन का सबसे कठिन, लेकिन बेहतरीन कौशल है। इस कुशलता को प्राप्त करने के लिए लगातार प्रयास करना पड़ेगा।  इस कम्युनिकेशन को assertive कम्युनिकेशन कहते हैं। सहज भाषा में -अपना और दूसरों के अधिकार को सम्मान करो। जहाँ 'ना 'बोलना ज़रूरी है , बोलो। 'हाँ 'मत बोलो। परंतु ऐसे बोलो कि सुनने वाला आपके और खुद के अधिकार का सम्मान करे और आपके 'ना 'बोलने के कारण को सराहे। assertive कम्युनिकेशन ज़िन्दगी का एक अहम् कौशल है जिसका प्रयोग व्यक्तिगत , सामाजिक और प्रोफेशनल रिश्तों को आगे बढ़ाने में मदत करता है। आप गौर कीजिएगा रामायण और महाभारत में assertive कम्युनिकेशन का घटनाओं पर प्रभाव। assertive ना होने का और होने का।
assertive कम्युनिकेशन करने का तरीका क्या है? सहज उपाय। लेकिन सीखने और प्रयोग करने में कठिन।
पहली बात -सुनो। क्या बोलना चाहता है ? क्या आप समझ पा रहे हो जो कि नही बोला जा रहा है ?
दूसरी बात -समझो। ज़रुरत होने पर प्रश्न पूछो।
तीसरी बात -अपना कारण व्यक्त करते हुए 'ना 'बोलो।
चौथी बात -ऐसा समाधान ढूंढो जो कि दोनो के अधिकार का सम्मान करता हो।
पाँचवी बात -तय किए हुए वादे को निभाओ
शुरू के उदाहरण को एक वार्तालाप के माध्यम से पेश करते हैं।
बॉस -आप कल रविवार दोपहर दो बजे ऑफिस आ जाइएगा।  काम है।
आप -sir मैं बेशक आ जाता परंतु मैंने अपने परिवार के साथ दोपहर में एक फिल्म देखने का प्रोग्राम बनाया है जिसके लिए मेरा कल दोपहर में ऑफिस आना संभव नही है। sir काम क्या है अगर आप बताएं तो मैं उस काम को करने का कोई उपाय ढूंढ सकता हूँ।
बॉस -मुझे इस महीने का रिपोर्ट भेजना है।
आप -sir , मैं घर पर काम करके आपका रिपोर्ट e mail के ज़रिये कल दोपहर के पहले भेज दूँगा। इससे आपका  काम भी हो जाएगा और मैं अपने परिवार को निराश भी नहीं करूँगा।
इस वार्तालाप को करते वक़्त कम्युनिकेशन के नियमों का ख्याल रखिएगा जरूर। याद है ना। 55 -38 -7 प्रतिशत का फार्मूला। आपका चेहरा और शरीर क्या बोल रहा है (55 %); किस अंदाज़ से आप बोल रहे हो (38 %) और आपके शब्दों का चयन (7 %).
कोशिश कीजिये assertive कम्युनिकेशन और मेरे साथ फेसबुक के माध्यम से शेयर कीजिये। सबसे बेहतरीन मिसाल मैं अगले महीने doc -u -mantra में पेश करूँगा। आपके नाम के साथ। वादा रहा। आम और रिश्तों का आनंद लीजिए।  खुश रहिए।  फेसबुक पर आपका इंतज़ार करूंगा। 
नमस्कार। पिछले महीने के लेख में मैंने चैंपियंस ट्रॉफी के विषय में जिक्र किया था। आपने फाइनल मैच देखा ?भारतीय टीम मैच हार गई। बूरी तरह से। हमारे कप्तान ने विपक्ष के विजयी टीम को सराहा। स्वीकार किया कि उन्होंने फाइनल में बेहतर खेला। इसके कुछ दिन बाद भारत के क्रिकेट टीम के कोच ने इस्तफ़ा दे दिया। ख़बरों के अनुसार उन्होंने भारतीय खिलाड़ी के पास फाइनल के बुरे परफॉरमेंस पर जवाब माँगा। हमारे कोच भी भारत के सफल खिलाडी रह चुके हैं और उन्होंने काफी लंबे समय के लिए भारत के टीम का अभिन्न हिस्सा रह चुके हैं। आज मैं क्रिकेट के विषय में नहीं ,रिश्तों के विषय में लिखूँगा।
कप्तान और कोच क्योँ अलग हो गए ? साथ में उनका प्रदर्शन क्रिकेट की दुनिया में सर्वश्रेष्ठ रहा। आँकड़े बताते हैं कि भारतीय टीम का विजय प्रतिशत शायद इतना अच्छा कभी नहीं रहा। तो फिर क्योँ अलग हो गए दोनों ? असल बात मुझे पता नहीं है। मैंने केवल संबाद माध्यम के जरिए सुना और समझा है ,उसके आधार पर रिश्तों के जुड़ने और टूटने पर टिप्पणी करूँगा।
कहा जाता है एक म्यान में आप दो तलवार नहीँ रख सकते हैं। शायद यही हुआ है भारतीय टीम के लिए। दो दिग्गज ,बेहतरीन खिलाड़ी। दोनों के स्वाधीन विचार। मत विरोध। एक दूसरे को जगह नहीं छोड़ना। नतीजा -म्यान में एक ही तलवार। कौन सही ,कौन गलत। पता नहीं। लेकिन पहली सीख किसी भी रिश्ते में एक दूसरे को पर्याप्त स्वाधीनता देना रिश्ते के लिए महत्वपूर्ण है।
घर में सोचिए -पति -पत्नी का रिश्ता। बच्चो का माता -पिता के साथ रिश्ता। दोस्ती में रिश्ता। क्या हम एक दूसरे को उतना जगह और स्वाधीनता देतें हैं जितना कि उस रिश्ते को जरूरत है ? मेरा तजुर्बा यह कहता है कि बुजुर्ग अक्सर बच्चोँ को उतनी स्वाधीनता नहीं देतें हैं जितना कि बढ़ते हुए बच्चोँ की जरूरत है। बच्चे बुजुर्गों के नज़र में बच्चे ही रह जाते चाहे उनकी उम्र कॉलेज के लायक क्यूँ न हो जाए।
इस वजह से काफी अभिभावक अपने बच्चो पर अपने निर्धारित किये हुए कैरियर थोप देतें हैं। उनका सोचना है कि उनकी जानकारी और निर्णय करने की क्षमता उनके बच्चोँ से बेहतर है चूकि उन्होंने जिंदगी को ज्यादा देखा है।
क्यों हम स्वाधीनता नहीं देते हैं ? क्योंकि हम दूसरे को रिश्ते में अपने बरोबर का नहीं समझते हैं। अभी भी कई पति अपने आप को अपनी पत्नी से ऊपर समझता है। पति जो बोलेगा पत्नी को सुनना पड़ेगा। यह ठीक नहीं है। एक पति -पत्नी के रिश्ते में दोनों का समान हक़ और जिम्मेवारी है। आश्चर्य वाली बात यह है कि जिनकी पत्नी काम करती है ,उनके पति भी उतना ही अपने आप को ऊँचा समझता है जितना कि ना काम करने वाली पत्नी का।
यही 'मैं उनसे बेहतर 'विश्वास के कारण हम दूसरों से अपने प्रति ज़्यादा श्रद्धा की उम्मीद करते हैं। शिक्षा प्रदान करने वाले अक्सर इस तरह से सोचते हैं। जैसे कि ऑफिस में बॉस अपने टीम के लोगों से उसी तरह का उम्मीद रखता है। और यही कारण बन जाता है रिश्तों में दरार का। किसी भी रिश्ते का नीव है पारस्परिक श्रद्धा। अगर आप श्रद्धा नहीं करोगे। आपको श्रद्धा नहीं मिलेगा। परंतु लोग इस बात को अक्सर नज़र अंदाज़ कर देते हैं।
किसी भी रिश्ते में मत विरोध होना कोई अस्वाभाविक बात नहीं है। ऐसे समय पर आपस में बात-चीत करके समस्या का समाधान ढूंढ लेना ही समझदारी वाली बात होती है। मुश्किल है कि कौन पहले बात को छेड़ेगा। यहाँ फिर कौन छोटा या कौन बड़ा का प्रश्न आ जाता है। किसी भी समस्या या मत -विरोध का अगर जल्दी समाधान ना ढूंढा जाए तो बात और बिगड़ जाती है।
दूसरों की इज्जत कीजिए , दूसरों को रिश्ते में जगह दीजिए देखिएगा आपके रिश्ते कितने मजबूत बनते जाते हैं। इस लेख के जरिए मैं भी आप लोगों से रिश्ता जोड़ने की कोशिश कर रहा हूँ। आपकी मैं इज्जत करता हूँ और अहम् दिल से विश्वास करता हूँ कि मैं आप सभी से मैं सीख सकता हूँ। आइए फेसबुक के माध्यम से मिलते हैं अपने रिश्ते को और मजबूत बनाने के लिए। इंतज़ार करूँगा। 

शुक्रवार, 30 जून 2017

क्रिकेट का चैंपियंस ट्रॉफी तो आप जरूर देख रहे होंगे। क्या यह आपके समय का सबसे बेहतर उपयोग है ? इस प्रश्न का जवाब सीधा और सरल नहीं है। अगर आपको क्रिकेट में ऐसी दिलचस्पी है कि आप और किसी काम पर कंसन्ट्रेट नहीं कर पाते हैं तो आपको क्रिकेट जरूर देखना चाहिए। परंतु उसके तुरंत बाद आपको अपना काम निपटा लेना चाहिए। कई साल पहले मैं किसी बड़ी कमपनी का जेनरल मैनेजर हुआ करता था। उस वक़्त मेरे टीम को छूट थी कि वह किसी भी एक दिवसीय क्रिकेट मैच में जहाँ भारतीय टीम खेल रही हैं , अंतिम के पाँच ओवर को टीवी पर देख सकता था। लेकिन मैच के ख़त्म होने के बाद विश्लेषण के लिए केवल दस मिनट का समय उपलब्ध था। उसके बाद काम पे लौटना है और काम ख़त्म करना जरूरी है।
आज मैं आपको अपने समय का बेहतर सदुपयोग के लिए शेष पाँच टिप्स का जिक्र करूंगा। जैसा मैंने वादा किया था आप से मेरे पिछले महीने के लेख में। अगर आप में से कोई पहली बार मुझसे मिल रहें हैं Doc -U -Mantra के माध्यम से और इस लेख से प्रभावित हो कर पिछले लेखों को पढ़ना चाहते हैं तो inextlive पर log in कीजिए। हर महीने के पहले सोमवार में आपको Doc -U -Mantra मिल जाएगा। सब पाठकों से निवेदन है आपकी फरमाइश का -आप किस विषय में मुझसे जानना चाहते हैं। फेसबुक के माध्यम से मुझे बताईए। आप संपादक को चिट्ठी के माध्यम से भी अपनी फरमाइश का जिक्र कर सकते हैं।
आपके समय का बेहतरीन उपयोग के लिए मेरा छठा सलाह है -दूसरों से काम लीजिये जब जरूरी हो। अंग्रेजी में इसे delegation कहते हैं। डेलीगेशन करते वक़्त आपको ख्याल रखना पड़ेगा कि आपने सही व्यक्ति को सही काम सही समय पर डेलिगेट किया है। डेलीगेशन का तात्पर्य है कि उस काम को सठिक करने की जिम्मेवारी आपकी है ,लेकिन काम कोई दूसरा करेगा। इसका मतलब यह होता है कि आपको सोच लेना पड़ेगा कि आप किस तरह से निश्चित करोगे कि जिसको आपने काम करने को कहा है , वह उसी तरह से काम कर रहा है। एक अच्छा मैनेजर वही होता है जो सठिक डेलिगेट कर सकता है।
बाद में करेंगे। कितनी बार आप कई काम को सही वक़्त पर नहीं करते हो। जरा सोचिए 'बाद में करेंगे' निर्णय तक पहुँचने के लिए आपको उस काम के जरूरत को समझना पड़ेगा। बाद में जब उस काम को करने जाइएगा , आपको दोबारा उस काम को समझना पड़ेगा। जिसके लिए आपको फिर समय देना पड़ेगा। किसी भी काम को अगर आपको इस वक़्त नहीं करना है ; तय कीजिए कि आप उस काम को किसीको डेलिगेट कर सकते हैं या नहीं। अगर आप डेलिगेट नहीं कर सकते हैं और उसी वक़्त आपके पास समय नहीं है तो आप ऐसा कीजिए कि उस काम को इतनी जल्दी कीजिए ताकि आपको काम को फिर से ज्यादा समय ना गुजारना पड़े। मैं जब जेनेरल मैनेजर की हैसियत में काम करता था तो ऑफिस के अन्य लोग मेरे चटपट डिसिशन का बहुत सराहना करते थे। मैं केवल अपने समय का बेहतर उपयोग कर रहा था। मैं किसी भी कागज़ जो कि मेरे मेज पर पहुचँता था ; उस कागज़ को मैं केवल एक ही बार पढ़कर निर्णय लेता था कि उसका करना क्या है ! यह मेरे जीवन का एक अभिन्न अंग बन चुका है।  करके देखिये आप कितना समय बचा सकोगे।
हिन्दी फिल्म के हीरो कई काम एक साथ बखुबी कर सकते हैं। याद रखिएगा यह फिल्मों में ही संभव है। आम ज़िन्दगी में नहीं। multi -tasking हर किसीके लिए संभव नहीं है। कुछ लोग कर सकते हैं ;वह भी कुछ हद तक। परन्तु कई लोग काबिल ना होने के बावजूत मल्टी टास्किंग करने का प्रयत्न करते हैं। करते वक़्त गलतियां करते हैं। जिसको सुधारने के लिए फिर समय चाहिए। अगर गलती भी नहीं करते हैं ; वह यह नहीं समझते हैं कि मल्टी टास्किंग करने के कारन कुल समय ज्यादा लगता है। अपना उदाहरण देता हूँ। किसी लेख में मैंने ज़िक्र किया था कि मैंने अपने आप को इस लेख को लिखने के लिए दो घण्टे का समय निर्धारित किया है। मैं दो घण्टे में यह लेख तभी ख़त्म कर सकता हूँ जब कि मैं लगातार दो घण्टे का समय इस लेख को लिखने में प्रयोग करूँ। सोचिए मैंने आधा घंटा लिखा ; कुछ और काम किया ; फिर वापस लेख लिखने बैठता हूँ ; मुझे दुबारा लिखने के मानसिक स्तिथि में खुद को लाना पड़ेगा।
कुछ लोग खुद काम नहीं करते हैं ; दूसरों को भी काम नहीं करने देते हैं।  ऐसे लोगों से सावधान रहिएगा।  इनको अपने समय के मूल्य का अंदाज़ नहीं है। इस तरह के टाइम वेस्टर्स के विषय में सचेतन रहिए। यह आपके समय को खा जाता है लेकिन आप समझ नहीं पाते हो। व्हॉट्स ऑप पर आप जो चैट करते हो ; इसी तरह का एक टाइम वेस्टर है जो कि आपका समय खा जाता है परन्तु आप समझ नहीं पाते हैं। मैं आजकल देखता हूँ कि लोग सफर के वक़्त अपने मोबाइल पर ही समय बिताते हैं।  आस पास क्या हो रहा है कुछ खबर नहीं है।  दुनिया पर नजर नहीं रखेंगे तो आप आगे बढ़िएगा कैसे ?
अंतिम सलाह -स्वस्थ रहिए। अस्वस्थ वक़्ति को किसी भी काम को करने में ज्यादा समय लगता है। समय निकालिए शारीरिक और मानसिक स्वस्थ को चंगा रखने के लिए। यह जिंदगी जीने का सबसे महत्वपूर्ण कदम है।  समय नहीं मिल रहा है आपको अपने स्वास्थ के ख्याल रखने का ?
तब आपको इस लेख में और पिछले लेख में ज़िक्र किए हुए टिप्स का प्रयोग करना जरूरी है। तभी आपको समय मिलेगा अपने सेहत का ख्याल रखने के लिए। जिसके बिना आपका समय का प्रयोग सही नहीं होगा।
मैं इंतेज़ार करूँगा आपसे सुनने के लिए। आपके समय के सदुपयोग के विषय में और आपके स्वस्थ जिंदगी का। खुश रहिए।  इसका कोई विकल्प नहीं है। 

शनिवार, 29 अप्रैल 2017

अभी ना जाओ छोड़कर कि दिल अभी भरा नहीं। कुछ पल समय को रोक देते हैं। कुछ आपके चाहने पर भी गुजरते नहीं। यही मजा है समय का। नमस्कार। कैसा बीत रहा है आपका समय ? चौबीस घण्टे कभी नहीं बदलेंगे। आपके मानसिक स्थिति निर्धारण करेगी आप समय को रोकना चाहते हो या समाप्त।
पिछले कुछ महीनों से मैं समय आपका और उसके बेहतर प्रयोग के विषय में चर्चा कर रहा हूँ। आज और अगले महीने की चर्चा में इस चर्चे को समाप्त करूँगा। दस टिप्स के साथ जिसके मदत  से अपने समय के बेहतर उपयोग में आपको लाभ होगा।
मैनेजमेंट के प्रसिद्द गुरु ने एक बहुत सहज बात का एहसास दिलाया था -what you cannot measure you cannot improve -जो आप माप नहीं सकते हो ,उसे आप सुधार नहीं सकते हो। आपका समय आप किस तरह से बिता रहे हो अगर आप नहीं समझ पाओगे तो सुधार कैसे लाओगे। मैं हर दिन के अंत में एक डायरी में अपने समय के प्रयोग को लिख डालता हूँ। हर सोमवार को पिछले हफ्ते के समय के प्रयोग का विश्लेषण करता हूँ। कितना समय लगता है मुझे रोज अपने डायरी में लिखने के लिए ? एक या दो मिनट। और कितना समय लगता है हर सोमवार विश्लेषण करने में और उसके अनुसार उस हफ्ते का प्लानिंग करने में ? मुश्किल से पांच मिनट। क्या आप इतना सा समय निकाल पाएँगे खुद को ज़िन्दगी में और आगे बढ़ाने के लिए ? याद है हमने पिछले किसी लेख में उल्लेख किया था कि हमसे कहीं अधिक सफल इंसान के पास उतना ही समय है जितना अपने पास। केवल उन्होंने अपने समय का सदूपयोग बेहतर किया है। शायद हम और आप अपने समय का बेहतर सदुपयोग करके प्रसिद्ध ना बन पाएँगे। लेकिन अधिक सफल जरूर बन सकते हैं। क्या आप अपने समय के मूल्यांकन की शुरुआत आज ,अभी शुरू करेंगे ? महीने की पहली तारीख है आज। शायद इतना अच्छा मौका जलदी नहीं मिलेगा।
हफ्ते के प्लान में मैं क्या करता हूँ ? यह तय करता हूँ कि इस हफ्ते मुझे क्या हासिल करना है ?उसकी एक लिस्ट बनाता हूँ। लिस्ट में लिखे हुए हर काम को करने में कितना समय दूँगा उसका निर्धारण करता हूँ। इस विषय में मैंने इसके पहले भी लिखा था। यह प्रथा मैंने कुछ महीनो पहले सीखा है और प्रयोग किया है। इससे मुझे बेहद फायदा हुआ है। इसके अलावा मैं कौन सा काम किस दिन करूँगा उसका चयन भी कर लेता हूँ। हफ्ते की शुरुआत में। मजे की बात यह है कि मेरे परिवार वाले भी इस बात को समझ गए हैं और पारिवारिक काम को भी इस लिस्ट में जोड़ देते हैं। मेरी बात मानिए इस प्लानिंग के कारण मुझे अपने व्यक्तिगत जीवन को  और बेहतर जीने में काफी मदत मिलता है।
लेकिन इतनी प्लांनिंग मैं याद कैसे रखता हूँ ? इसके लिए मुझे अपने बच्चोँ को धन्यवाद देना होगा। मैंने काफी दिनों तक एक अति साधारण मोबाइल फ़ोन का इस्तेमाल किया है। मेरा कहना था कि मोबाइल फ़ोन कॉल करने और sms भेजने के अलावा और किसी  जरूरत का नहीं है। मैं गलत था। बच्चों ने मुझे समझाया एक मोबाइल हैंडसेट मुझे मेरे समय के उपयोग में कितना फायदेमंद है। हर दिन का प्लानिंग ;महत्वपूर्ण काम के लिए आगाम एलर्ट ; आगे के काम को इसी वक़्त समय रेखा पर लिख डालना। मेरी ज़िन्दगी बदल गई है ,इस एहसास के बाद। धन्यवाद बच्चों। आपने हमें अपने समय को बेहतर मैनेज करने में एक नई दिशा दी है।
प्लैनिंग करते वक्त हम अकसर एक गलती कर डालते हैं। जितना सम्भव है उससे कहीं ज्यादा काम करने का प्रयत्न करते हैं। इसका फल है कि हम संभाल नहीं सकते हैं और हाल छोड़ देते हैं। फिर हमारा पूरा प्रयास विफल हो जाता है और आगे हम कोशिश नहीं करते हैं। प्लैनिंग करते वक़्त मैं पाँच का फॉर्मूला प्रयोग करता हूँ। पाँच चीजें जिस पर मैं कुछ समय के लिए अपना ९५ प्रतिशत फोकस दूँगा। कितने दिनों में इन पाँच काम को निपटाऊंगा यह भी तय कर लेता हूँ। एक उदाहरण स्वरुप मैं इस हफ्ते का अपना प्लैनिंग पेश कर रहा हूँ आपके लिए। इस हफ्ते में मुझे ८ काम को हासिल करना है। इन आठ काम में तीन काम मुझे मंगलवार यानि कल तक ख़त्म करना पड़ेगा। आज और कल मैं अपना ७५ प्रतिशत समय इन दो काम को समाप्त करने के लिए प्रयोग करूँगा। बीस प्रतिशत समय और तीन काम जो कि प्रायोरिटी में इन दो काम के ठीक बाद आएगा उन पर प्रयोग करूँगा।
आज का आखरी टिप। आप कितना भी प्लॉन कर लो अक्सर परिस्थितियाँ आपको कुछ और करने पर मजबूर कर देती हैं। करने चले थे कुछ ,करना पड़ा और कुछ। विचलित मत हो जाईए। ज़िन्दगी में यह एडजस्टमेंट सदा चलता रहेगा। यह ज़िन्दगी का एक अभिन्न अंग है। गंतव्य तक पहुँचने के सफर में ऐसे मोड़ और उतार चढ़ाओ रहेगा ही। वही सफल होता है जो तुरंत अपना गति और जरूरत होने पर पथ बदलने का सठीक निर्णय समय पर लेता है। रास्ता से उतर कर पगडण्डी पर थोड़ी देर शायद चलना परे वापस रास्ता पर आने के लिए।
यह पाँच का फॉर्मूला मैंने अजानते हुए अपने इस लेख में भी कर डाला। आपके साथ आज दस में पाँच टिप्स पेश करके। सहज बात याद रखिएगा। हमारे हाथ के पाँच उँगलियाँ हैं। और वही हमारे कण्ट्रोल में रहता है जिस पर हम अपना मुठ्ठी बांध सकते हैं। क्या आप अपने समय को अपने मुठ्ठी में ले चुके हैं ? नहीं ? तो कोशिश जरूर कीजिए। ज़िन्दगी का आनन्द कहीं एक अलग ,ऊँचे पायदान पर ले जा सकिएगा।
गर्मी और बढ़ेगी। अपना और अपनों के सेहत का ख्याल रखिएगा। अगले महीने आखिर और दसवां टिप सेहत के विषय पर है। तब तक खुश रहिए और ज़िन्दगी का आनंद लीजिए। 

सोमवार, 24 अप्रैल 2017

गर्मी का मौसम द्वार पे खड़ा है। दिन लंबे होते जा रहें हैं। रात छोटा। मज़े की बात यह है कि हम सब शाम का इंतज़ार करते हैं ताकि गर्मी से थोड़ा राहत मिले। आपके दिन लंबे होने के कारण क्या आप ज़िन्दगी से ज़्यादा हासिल कर पा रहें हैं ? पिछले महीने मैंने अपने समय का सदुपयोग करने का ज़िक्र किया था। आज उस चर्चे को आगे ले जाना चाहता हूँ।
अगर हम अपने समय के उपयोग का विश्लेषण करें तो यह महसूस कीजिएगा की आप urgent यानि जिस काम को 'अभी 'करना है या important अर्थार्त 'जरूरी 'काम करते हैं। हम सोचते हैं कि हम अर्जेंट या इम्पोर्टेन्ट काम करते हैं , ऐसा नहीं है। जरा सोचिये। मौका मिलते ही व्हाट्स ऑप चेक करते हैं। यह अर्जेंट है या इम्पोर्टेन्ट ? कितना समय बिताते हैं आप सोशल मीडिया पर ?क्या मिलता हैं आपको ? लाइक्स। एक रिसर्च में मैंने पढ़ा है की आज कल के युवा अपने स्मार्ट फ़ोन पर प्रतिदिन 169 मिनट बिताते हैं। आप कितना समय बिताते हैं अपने फ़ोन पर ? मै तो देखता हूँ कि आज के युवा का सर हर वक़्त झुका रहता है -शर्म के कारण नहीं, फ़ोन के कारण। ट्रेन ,बस या कार में सफर करते वक़्त आज के युवा इस फ़ोन के कारण बाहर के दृश्य को मिस कर जाते हैं।
अगर आप को अपने समय का बेहतर उपयोग करने का इरादा है ,ज़िन्दगी से अधिक पाने के लिए , आपको अपने काम को चार बक्सों में विभाजित करना पड़ेगा। 
  1. अर्जेंट और इम्पोर्टेन्ट 
  2. नॉट अर्जेंट लेकिन इम्पोर्टेन्ट 
  3. नॉट इम्पोर्टेन्ट लेकिन अर्जेंट 
  4. नॉट अर्जेंट और नॉट इम्पोर्टेन्ट 
रिसर्च कहता है  की ज़्यादा लोग ऊपर लिखे विभाजन के अनुसार सबसे कम समय दो नंबर यानि नॉट अर्जेंट लेकिन इम्पोर्टेन्ट काम को देते हैं। परंतु यही किसी भी इंसान के उन्नति और तरक्की के लिए सबसे जरूरी है। उदाहरण है ट्रेनिंग या प्रशिक्षण के समय निकालना ही खुद को आगे बढ़ने के लिए। जो लोग नौकरी करते हैं इस ट्रेनिंग के लिए समय निकाल नहीं पाते हैं हर काम को अर्जेंट सोच कर।
अगर आप हर वक़्त अर्जेंट और इम्पोर्टेन्ट काम में उलझे रहोगे तब का ज़िन्दगी क्राइसिस से गुजर रहा है। आपके पास समय नहीं है खुद की तरक्की के लिए समय निवेश करने का। दूसरी बात इसके कारण आप थक जाओगे ;ज़िन्दगी से कम आनंद ले पाओगे और शीघ्र बर्न आउट हो जाओगे।
तीसरा बक्सा सबसे खतरनाक बक्सा है -नॉट इम्पोर्टेन्ट लेकिन अर्जेंट -इसी बक्से के कारण इंसान सबसे ज्यादा धोका खा जाता है। अर्जेंसी का निर्णय बहुत समय गलत हो जाता है। नतीजा यह होता है कि हम नॉट इम्पोर्टेन्ट काम पर समय गुजार देते हैं अर्जेंसी के लिए और फिर एहसास होता है कि इम्पोर्टेन्ट काम के लिए या तो समय कम है या समय है ही नही।
चौथा बक्सा समय की बरबादी है -नॉट अर्जेंट और नॉट इम्पोर्टेन्ट वाला बक्सा -सोशल मीडिया में गुजारा हुआ अत्यधिक समय इस बकसे में आता है। क्या आपका ज़िन्दगी फेसबुक और व्हाट्स एप्प पर निर्भर करता है। देख लीजिए यही सबसे बेहतरीन उपाय है आपके लिए या नहीं।
सफलता का फार्मूला क्या है ?चौथे बकसे में दस प्रतिशत से अधिक समय मत बिताइए। तीसरे बकसे से सावधान रहिए। पहले और तीसरे बकसे में कभी -कभी निर्णय गलत हो जाता है। कोशिश कीजिए की तीसरे बकसे में बीस प्रतिशत से ज्यादा समय ना गुजारे।
प्रथम बकसे में चालीस से पचास प्रतिशत समय गुजारिए। ज़्यादा नहीं। इससे ज्यादा अगर आपको इस बक्सा में समय गुजारना परे तो आप कहीं गलती कर रहे हो अपने काम के चयन पर।
दुसरे बकसे में आप जितना अधिक समय दोगे -कम से कम पचीस से तीस प्रतिशत -उतना ही आपको सुविधा होगी अपने तरक्की के लिए।
कैसा लगा आज आपको ?कोशिश कीजिए। देखिएगा आपका ज़िन्दगी में सुधार। आनंद लीजिए ज़िन्दगी का। अपने बहुमूल्य सुझाव के साथ मुझसे मिलिए फेसबुक के माध्यम से। यह समय आपके लिए और मेरे लिए दूसरे बकसे का समय है। खुश रहिए। 

शुक्रवार, 31 मार्च 2017

नमस्कार। आपका समय कैसा बीत रहा है इस साल ? अक्सर हम लोगों से इस तरह का प्रश्न करते हैं। सही में समय अपने आप बीत जाता है। रुकता नहीं है किसी के लिए। ना ही किसी का इंतज़ार करता है। अच्छा समय समझने के पहले गुज़र जाता है ;बुरा गुजरने का नाम ही नहीं लेता है।
समय एकमात्र बहुमूल्य सम्पद है जो की हर इंसान के पास समान है -दिन के २४ घंटे। इसका सदुपयोग ही हम सबको एक दूसरे से अलग करता है। जिन सफल इंसानो की हम पूजा करते हैं ,उनके पास भी दिन के चौबीस घंटे हैं -आपके पास ,मेरे पास भी। 
आपने शायद यह भी महसूस किया होगा कि आप अपने आप जिस तरह से आज अपना २४ घंटे गुज़ार रहें हैं ; वह पिछले पॉँच साल में कितना बदल चुका है। बदलेगा ही क्योंकि दुनिया बदल रही है। समय बदल रहा है। सोच बदल रहे हैं। और ज़िन्दगी के प्रति हमरा अंदाज़ बदल रहा है। इस द्रुत बदलते हुए समय केवल हमारे हर किसीके दिन का २४ घंटे उतने के उतने ही हैं और रहेंगे भी। हर कोई अपने पास समय के अभाव को महसूस जरूर कर रहा है। क्या आप हमसे सहमत हैं ?
अक्सर मुझे कई लोगों ने उन्हें टाइम मैनेजमेंट सीखाने का ज़िक्र किया है। मैं उनको सहज भाषा में यह समझाता हूँ कि Time cannot be managed . We have to manage ourselves to manage time better इसका तात्पर्य यह है कि समय को मैनेज करने का प्रयास वृथा है -घड़ी का कांटा किसी के लिए रुकता नहीं है। हम खुद को और हम क्या कर रहे हैं उस पर हमारे समय का सदुपयोग निर्भर करता है। 
क्या आप ज़िन्दगी में कुछ ऐसे लोगों से मिले हैं जिन्हें हर वक़्त अपने लिए क्वालिटी समय रहता है ?ईर्ष्या होती है इन लोगों से ?इतना कुछ करते हैं ; इतने सफल हैं लेकिन फिर भी खुद के पास इतना समय है। क्या करते हैं ये लोग ?
  1. ऐसे लोग उसी काम को करने पर अपना समय बीताते हैं जो की उनकी जिम्मेवारी है। दूसरों का नहीं। इसका तात्पर्य यह होता है कि अपना और दूसरों का जिम्मेवारी के बारे में दोनों की समझ सही है। जैसे की एक मैनेजर को अपना काम पर समय बिताना चाहिए ना कि अपने सहयोगी के काम पर। इसके लिए  जरूरी है की मैनेजर और सहयोगी को एक दूसरे के काम के विषय में समझ ठीक हो। 
  2. कुछ लोग क्या करना है लिख कर रखते हैं -इसे 'To Do' लिस्ट कहा जाता है। लिस्ट तो सदियों से बनता आ रहा है। लेकिन लिस्ट का प्रयोग समय के साथ बदल रहा है क्या ?इस साल के शुरुआत से मैंने एक प्रयोग किया है इस विषय में जो कि मुझे काफी मदत कर रहा है। पहले इस लिस्ट में जो काम मुझे करना है उसके साथ उस काम को समाप्त करने के लिए अंदाज़ कितना समय लगना चाहिए यह मैं नहीं लिखता था। इसके कारण अक्सर मैं इस लिस्ट के किसी -किसी काम को करने में ज़रूरत से ज़्यादा समय दे डालता था जिसके कारण कई और काम को करने के लिए मेरे पास समय कम मिलता था। ज़ल्दबाज़ी में गलतियां ज़्यादा होती थी और क्वालिटी भी घट जाता था। इसी लेख के विषय में इसका एक उदाहरण पेश करता हूँ। जनवरी महीने से मैंने इस लेख को लिखने के लिए दो घंटे का समय निर्धारण किया है। दूसरा निर्णय इस विषय में यह है कि मैं सुबह इस लेख को लिखता हूँ चूँकि उस समय दिमाग सबसे अधिक चलता है और सोच जल्दी और बेहतर होता है। तब से मैं दो घंटे में यह लेख लिख डालता हूँ। 
  3. कुछ परिस्थितियां आपके नियंत्रण के बाहर होती हैं जो कि आपके समय को खा जाती है। काफी लोग इसके कारण विचलित हो जाते हैं और इसके कारण कुछ और समय बर्बाद करते हैं। कुछ फायदा नहीं होता है ,ज़िन्दगी में जिस पर आपका कोई नियंत्रण नहीं है, उस पर नियंत्रण करने का प्रयत्न ही समय का अपचय है। इस वक़्त ,यह लेख लिखते हूए हमारा इन्टरनेट अत्यधिक धीमे गति से चल रहा है जिसके कारण मुझे दुगना समय लग रहा है। दो घंटे पूरे हो चुके हैं मेरे लिए। इस धीमी गति के इन्टरनेट के वजह से आज और लिखना समय का सदुपयोग नहीं है। अगले महीने और कई तरीकों का ज़िक्र करूँगा , खुद को बेहतर मैनेज करने के लिए ताकि आपका खुद के  समय का प्रयोग में उन्नति आए। आखिर २४ घंटे का आनंद तो ज़्यादा लेना पड़ेगा। है ना ?
कैसा लगा मेरे इस नए साल का प्रयास। ज़रूर समय निकालिए मुझसे फेसबुक पर मिलने के लिए। इंतज़ार करूंगा। आपका और आपके समय का। मेरे लिए। खुश रहिए। 

शुक्रवार, 3 मार्च 2017

कैसा रहा जनवरी का महीना ? कुछ सोचा है आपने अपने विषय में ,इस नए साल के अवसर पर ? कोई संकल्प किया है तरक्की का ? मैंने किया है , अपने आप से। मैं इस साल के शुरू से अपने समय का बेहतर प्रयोग करने का कोशिश कर रहा हूँ। कुछ हद तक सफलता भी मिली है। काफी तरक्की करनी पड़ेगी ,अभी भी। अपने इस प्रयास के विषय में अगले महीने के इस लेख में लिखुंगा। इस बार ज़िक्र करना चाहता हूँ एक इंसान के संकल्प के विषय में। इस फिल्म ने मुझे बहुत प्रभावित किया है। सोचने और सीखने में मजबूर किया है।
एक पिता का संकल्प अपने बेटी के माध्यम से देश के लिए स्वर्ण पदक। यह सत्य घटना पर आधारित है। मेरा प्रणाम उस पिता को ;उनके बेटियों को ; और जिसका भूमिका बहुत ही अहम् रहा है बेटियों की माँ को। हमने काफी कुछ सीखा है आप लोगों से जो की आज के कर्म जीवन में सफलता पाने के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है। धन्यवाद तहे दिल से। ग्रहण कीजियेगा और मेरे जैसे आम लोगों के लिए हर वक़्त एक मिसाल बन कर रहिएगा।
मैंने कई सारी बातें सीखी हैं। दस महत्वपूर्ण सीख का जिक्र करूँगा। आपने अगर और सीखा है ,फेसबुक के माध्यम से मुझे जरूर बताइएगा।

  1. डर पर विजय पाना होगा -कोई भी नए प्रयास के लिए अपने दिल से डर को निकाल फेकना होगा। 'कुछ तो लोग कहेंगे ,लोगो का काम है कहना '-चाहे दुनिया भी कहे आपको अपने विश्वास पर कायम रहना पड़ेगा। यह तब और जरूरत है , जब आप ऐसा कुछ प्रयास कर रहें है जो किसीने पहले कभी नहीं किया हो। जैसे बेटियों का कुश्ती के अखाड़े को अपनाना। 
  2. डिसिप्लिन -इसके बारे में मैंने पिछले कई लेखों में ज़िक्र किया है। डिसिप्लिन के बिना कोई सफलता नहीं मिल सकती है। इस फिल्म ने डिसिप्लिन का एक नया मापदंड दिया है -त्याग का। और लोगों से आगे रहने के लिए कई आराम और आनंद देने वाले चीज़ों की क़ुरबानी देनी पड़ेगी। आज हमारे भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान इसके सबसे उत्कृष्ट मिसाल हैं। 
  3. सही और गलत का सठीक निर्णय -बेटियों ने अपने पापा को समझाने के लिए काफी सारी कठिनाईयों का कारण पेश किया। स्कूल में अन्य बच्चो का टिप्पणी ;मोहल्ले में लोगों का पर हँसना ; लंबे बालों का अखाड़े का मिट्टी के कारण गंदा हो जाना। पापा ने और सब चीज़ों को नज़रंदाज़ किया। केवल बाल कटवा दिए। 
  4. कोई भी आपकी ज़िन्दगी में नई मोर ला सकता है -आपको सजग रहना पड़ेगा। सुनना पड़ेगा। याद है बेटियों की दोस्त की शादी ?यहाँ दो बेटियाँ परेशान थी अपने पापा के तानाशाही से; उनके कठीन संकल्प से बेटियों को सफल कुश्तीगीर बनाने का ; और नई नवेली दुल्हन दुखी थी क्योंकि उनके पापा ने केवल उनकी जल्दी शादी की ही प्रयास की थी। यही अहसास दोनों बेटीयों के जिंदगी का सबसे अहम् मोड़ बन गया। इसके बाद उनका संकल्प उनके पिता के संकल्प के साथ जुड़ गया। आपके जिंदगी में कोई ऐसा मोड़ आया है , अब तक ?
  5. गंतव्य के निर्धारण के साथ -साथ वहाँ तक पहुँचने का सफर भी तय कर लेना चाहिए -कई बाधाएं आयेंगी सफर के दौरान। निराशा इस सफर का एक अभिन्न अंग है। मंजिल तक वही पहुँचता है जो कि रास्ते में आए कठिनाई का हौसले के साथ सामना करता है ;गलतियों से सीखता है -मुर्झा नहीं जाता है और अपने विश्वास पर अटूट रहता है। संकल्प ही नाव को किनारे तक पहुँचाता है। 
  6. दूसरोँ का साथ जरूरी है -चाहे वह माँ का निस्वार्थ साथ हो या मुर्गी बेचने वाले का व्यवसायिक निर्णय। साथ वही निभाता है जो आपके काबिलियत पर विश्वास करता है। आपके सफलता से उसका क्या ताल्लुक है ?
  7. हट के सोचना जरूरी है -समाधान ढूढ़ने के लिए। गद्दा तो गद्दा ही होता है जी !ना मिल सके तो क्या हुआ -फ़ोन पर भी तो कोचिंग हो सकता है। ईरादा सठीक है तो समाधान जरूर मिल जाएगा। अलग सोच में अकसर समाधान छुपा रहता है। 
  8. जिनके पास क्षमता है उनसे दुशमनी लेने से कोई फायदा नहीं होता है -जिनके पास आपसे ज्यादा क्षमता है उनका अगर दिल चाहे तो आपके रास्ते का काँटा जरूर बन सकते हैं। आपके मंजिल तक पहुँचने के लिए ऐसा कुछ मत कीजिये जो कि आपको अपने मार्ग से भटका दे। ऐसा मेहनत बेकार है और आपको अपने मंजिल तक पहुँचने से वंचित कर सकता है। 
  9. निर्णय आपका ,जिम्मेवारी आपकी -अकसर जिंदगी में आपके चाहने वाले , आपके श्रद्धेय ऐसी सलाह देतें हैं जो कि एक दूसरे के विपरीत हैं। दोनों आपका भला और सफलता चाहते हैं। जैसे फिल्म में पिताजी और कोच में सोच अलग था। सलाह कोई भी दे सकता है। निर्णय आपको लेना होगा। और उस निर्णय के फलस्वरूप नतीजे की जिम्मेवारी आपकी होगी। 
  10. डूबते को तिनके का सहारा नहीं भी मिल सकता है -खुद को डूबने से बचाना पड़ेगा। हम इस दुनिया में अकेले आए हैं और हमें जिंदगी में सफलता पाने के लिए हर कठिनाई का सामना खुद करना पड़ेगा। अपने अंतिम शक्ति तक। पूरी ज़िद के साथ। नहीं तो हम सफर में आए हुए कठिनाईयों के नीचे दब जाएंगे। 
क्या आप मुझसे सहमत है ?फिल्म देखी है आपने ?अगर नहीं तो जरूर देखिए। ऐसी फिल्म कदाचित बनती है। क्या पता इस फिल्म के प्रभाव से आपका ज़िन्दगी एक नया मोड़ ले। चलिए ना ,ना चले हुए पथ पर। शायद आपने खुद को अब तक पूरी तरह पहचाना ना हो ! आपका इंतज़ार करूँगा फेसबुक पर। 

मंगलवार, 3 जनवरी 2017

नमस्कार। कैसा रहा आपका कल का दिन ?नए साल का पहला दिन। आशा है अच्छा रहा। आपको नए साल की बधाई। दुआ करता हूँ की हर किसी का 2017 मंगलमय हो। बेहतर हो।
2016 के शुरुआत में आपने क्या कोई नए साल का resolution या प्रतिज्ञा किया था ? कितने दिनों तक आपने सफलता के साथ अपने प्रतिज्ञा को निभाया ? कई लोग नए साल पर resolution करते हैं। मैं भी करता हूँ। शायद आप भी। क्यों करते हैं हम ?नया साल ,नई शुरुआत ? साल के बीच में क्यों नहीं करते हैं ? resolution को क्यों हम निभा नहीं पाते हैं ? आज कुछ बातें इसी विषय पर करेंगे।
resolution क्या है ? खुद में एक परिवर्तन जो कि फायदेमंद है अपने लिए। अपनों के लिए। धूम्रपान बंद करना ,वजन घटाना , काम के सिलसिले में नए तरीका अपनाना। करना  उतना आसान नहीं है जितना की सोचना। कहीं पर एक inertia रहता है परिवर्तन का। इस लिए हम साल में एक बार प्रतिज्ञा करते हैं। कोशिश जरूर करते हैं। लेकिन प्रतिज्ञा पर टिक नहीं पाते हैं। फिर क्या करतें हैं ? अगले साल का इंतेज़ार।
परिवर्तन के लिए ज़िद और तैयारी बहुत जरूरी है। परिवर्तन के  उपाय को हम आसानी से समझने और याद रखने के लिए हम ABCD of change के विषय में बात करेंगे। A -Accept , B- Believe, C- Commit, D- Do.
Accept -आपको यह स्वीकार करना पड़ेगा कि परिवर्तन आवश्यक है। बात यहाँ से शुरू होती है। मजबूर होने के पहले अपनी मर्जी से परिवर्तन लाने में ही मंगल है।
Believe -केवल स्वीकार करने से नहीं चलेगा। खुद पर विश्वास रखना पड़ेगा कि मैं यह परिवर्तन कर सकता हूँ। मेरे तजुर्बे में यहीं पर काफी लोग हार मान जाते हैं। हमें यह समझना है कि बदलाव दिमाग में पहले जरूरी है क्योंकि हमारा दिमाग यह निर्धारण करता है कि हम क्या करेंगे या नहीं करेंगे।
Commit -ज़िद वाली बात। खुद को बताना क्या नहीं करना है या करना है। धूम्रपान नहीं करना है या सुबह का वाक करना है। मैंने कुछ लोगों को देखा है कि कम सिगरेट पिऊंगा। इससे सफलता नहीं मिलती है। कम की परिभाषा क्या है ? याद है वह डायलाग -एक बार मैंने कमिटमेंट कर दी तो खुद का भी नहीं सुनता हूँ। परिवर्तन के शुरू में दिल और दिमाग दोनों को बैलेंस करने का सर्वश्रेष्ठ मिसाल है। कमिटमेंट की सुनूँगा। खुद की नहीं। ऐसा संकल्प के बिना परिवर्तन संभव नहीं है।
Do -आप स्वीकार कर लो। खुद पर विश्वास रखो की आप कर सकते हो। कमिटमेंट भी आपने कर दी। लेकिन परिवर्तन तो आपको ,खुद को , करना पड़ेगा। कोई दूसरा आपके लिए नहीं कर पाएगा। करना पड़ेगा। करते रहना पड़ेगा। तब तक। जब तक परिवर्तन सम्पूर्ण ना हो जाए।
मैं दो उदहारण पेश करना चाहूँगा इस पद्धति को प्रमाण करने के लिए। एक अपने जीवन से। और एक भारतीय क्रिकेट टीम के २००३-०४ में ऑस्ट्रेलिया के सफर से।
मैं एक समय तक दिन में ४० सिगरेट पिया करता था। १९९३ के पहले दिन मैंने निर्णय लिया की मुझे सिगरेट पीना बंद करना क्योंकि स्वास्थ के लिए बहुत हानिकारक है। मैं उस वक़्त एक अंतरराष्ट्रीय फार्मास्यूटिकल कंपनी में काम करता था जिसके कारन मैंने काफी पढ़ाई की थी और इस निष्कर्ष पर पहुंचा था। क्या बाधाएं थी मेरे इस परिवर्तन को हासिल करने में ? एक मुझे सिगरेट पीने में आनंद मिलता था और सुबह पहली चाय के साथ सिगरेट पीने का प्रातक्रिया पर प्रभाव- पूरी बात मानसिक था , वैज्ञानिक नहीं। मैंने पहले सुबह के चाय के साथ सिगरेट पीना बंद किया। ताकि शरीर का उस पर डिपेंडेंस ख़त्म हो जाए। एक महीने तक यह चलता रहा। ३१ जनवरी १९९३ को मैंने एक घंटे के दरम्यान २० सिगरेट पी। एक के बाद एक। इतना पिया की मुझे घृणा हो गई सिगरेट पीने से। तब से मैंने सिगरेट छुआ तक नहीं है। दोस्तोँ के महफ़िल में एक कश तक नहीं लेता हूँ। डर है कि वापस पीने ना लगूं। क्या सीखा मैंने ? प्लानिंग ,संकल्प और डिसिप्लिन के बिना परिवर्तन संभव नहीं है।
दूसरा उदाहरण हमें तेरह साल पहले इसी दिन भारतीय क्रिकेट टीम के ऑस्ट्रेलिया के दौरे पर सिडनी टेस्ट के पहले दिन पर ले जाता है। २००३-०४ के इस दौरे पर हमारे लिटिल मास्टर पहले तीन टेस्ट मैच में नाकामयाब थे। विडियो विश्लेषण के माध्यम से उन्होंने यह समझा था कि वह ऑफ ड्राइव करते वक़्त विकेट के पीछे कैच आउट हो जा रहे थे। इस कमजोरी को स्वीकार करने के बाद उन्होंने अपने आप पर विश्वास किया और खुद से एक गज़ब कमिटमेन्ट किया -सिडनी टेस्ट मैच में वह किसी भी गेंद पर ऑफ ड्राइव नहीं करेंगे ! परिणाम -उन्होंने जिंदगी का सर्वाधिक टेस्ट स्कोर बनाया -नाबाद रह कर २४१ रन !
इस उदाहरण से हमने क्या सीखा ? आप अपने दुनिया के बेताज बादशाह हो सकते हो। फिर आपको परिवर्तन जरूरी है। और इस परिवर्तन को करने में आपका अहंकार आपका सबसे कठिन समस्या बन सकता है। परिवर्तन के लिए अहंकार पर काबू पाना जरूरी है। नहीं तो सफलता नहीं मिलेगी। अगर क्रिकेट का बादशाह अपने अहंकार को काबू कर सकता है , तो हम क्यों नहीं कर सकते हैं।
क्या आप इस नए साल में ABCD का प्रयोग करना चाहते हैं अपने लिए ? मुझे फेसबुक के माध्यम से जानकारी दीजिये। शायद मैं आपकी मदद कर सकूँ अगर आपने चाहा तो। खुश रहिये। स्वस्थ रहिए। यही दुआ मांगता हूँ सब के लिए। ऊपर वाले से।