शुक्रवार, 11 अगस्त 2017

पिछले महीने में मैंने रिश्तों के विषय में चर्चा किया था। मेरा मूल सन्देश रिश्तों में एक दूसरे को पर्याप्त स्वाधीनता देना था। क्या अपने रिश्तों में स्वाधीनता का प्रयोग किया है मेरे लेख को पढ़ने के बाद ? फायदा दिख रहा है ? रिश्तें मजबूत बन रहें हैं ? मजबूत रिश्ते अक्सर इंसान को उदास करते हैं।
जैसा की मुझे। इस वक़्त। मेरा छोटा बेटा ग्रेजुएशन के लिए आज अमेरिका के लिए रवाना हो रहा है। घर पे उदासी है। इतना दूर जा रहा है। दोस्त और रिश्तेदार का कहना है -ग्रेजुएशन इंडिया में करना चाहिए था -उसके बाद विदेश में पढ़ना बेहतर होता -जैसा कि मेरे बड़े बेटे ने किया था।
क्यों उदास हूँ मैं ? ऐसे तो बेटा पढ़ाई लिखाई ,गिटार ,दोस्त लेकर व्यस्त ,मैं अपने काम और कई और चीज़ों को लेकर व्यस्त। कितना समय एक साथ गुजारते हम। दिन में एक घण्टा औसत में। बच्चे बड़े हो जाने पर अपना स्वतंत्रता चाहते हैं जिसका मैंने ज़िक्र किया था। और जो मैंने दिया है। रिश्तों का एक महत्वपूर्ण सीख है इस अनुभूति में- ज्यादा समय साथ में नहीं गुजारते हैं जब कोई पास है ,परन्तु दिल नहीं चाहता है कि वह दूर जाए। यह रिश्ते के मजबूती को दर्शाता है। ज़िन्दगी में कई लोगों के साथ रोज का मिलना -जुलना होता रहता है ,लेकिन वह अगर हमसे दूर हो जाएँ तो कुछ ज़्यादा फर्क नहीं पड़ता है। कई और लोग होते हैं -खासकर सच्चे दोस्त -जिनके साथ सालोँ से मुलाकात नहीं होती हैं ,लेकिन हमें पता रहता है ,कि वह हमारे लिए है ,कभी भी ,कहीं भी -ना मौजूद रहने पर भी ,दिल से करीब है। यही रिश्ते अति मूल्यवान हैं। इन्हे संवारना ज़िन्दगी के लिए ज़रूरी है।कभी -कभी इस तरह के गभीर रिश्ते हमें अँधा बना देते हैं। जिसके कारण हम अपने अपनों को कभी -कभी उनकी सपनों से वंचित करते हैं। कोई पाठक है जिनके अभिभावकों ने आपको घर से दूर जाने की इजाजत नहीं दी है ,पढ़ने के लिए ,आपके चाहते हुए भी। मैंने अपनी ज़िन्दगी में कई पिता को देखा है अपनी बिटिया को वंचित करते हुए ऐसी परिस्थितियों में। क्यों बच्चे अपने सपनो को न्योछावर करेंगे ,आपकी भावनाओं की खातिर। अगर कोई अभिभावक इस वक़्त मेरा यह लेख पढ़ रहें हैं ;मैं उनसे निवेदन करूँगा की बच्चों को उनके सपने को सच करने का मौका दें -रिश्तों का लिहाज़ तभी होता है।
इस लेख को लिखते वक़्त मुझे अपने माता -पिता की याद आ रही है। ज़रूर वह अपनी दुनिया से अपने नाति का मार्ग दर्शन कर रहें हैं। उनके आशीर्वाद के बिना कुछ संभव नहीं है। अगर वह इस दुनिया में होते तो गर्व से सबको बताते। एक विषय के बारे में मैं शत प्रतिशत कॉंफिडेंट हूँ -वह नाति को कभी भी हमसे इतना दूर पढ़ने जाने से नहीं रोकते। क्योंकि  उन्होंने ३७ साल पहले अपने इकलौते संतान को सोलह साल की नाजुक उम्र में पढ़ने के लिए बिहार के छोटे शहर से मद्रास जाने से नहीं रोका था। उन दिनों पोस्टकार्ड पर पत्र लिखने के अलावा योगायोग के साधन बहुत सीमित थे। इंडियन एयरलाइन्स के कुछ फ्लाइट हुआ करते थे ,बड़े शहरों के बीच ;ट्रंक -कॉल बुक करना पड़ता था ,फ़ोन पर बात करने के लिए। जमालपुर से मद्रास पहुँचने मे अड़तालीस घण्टे का समय लगता था। आज मैं जो कुछ भी हूँ ,अपने माता -पिता के निस्वार्थ निर्णय के कारण -अपने दिल और भावनाओं पर पत्थर रख कर मुझे मद्रास जाने का अनुमति देना। बाबा -माँ ,आज मैं महसूस कर रहा हूँ आपके भावनाओं को जब मैं खुद उन भावनाओं से गुज़र रहा हूँ। अभी तो टेक्नोलॉजी के कारण योगायोग के उपाय हमारे मुट्ठी में हैं। फिर भी मेरी उदासी आपके दिल में हो रही उथल -पुथल का एहसास दिला रही है जब मैंने घर छोड़ा था ३७ साल पहले। धन्यवाद आप दोनों को आपके निर्णय के लिए।
थोड़ा भावुक हो गया हूँ। पिछले दिनों मैं मैडम रीता बिबरा जी से बात कर रहा था। रीता जी कई स्कूल और कॉलेज को मैनेज करती है। मैं उनका फैन हूँ -उनके जीवन दर्शन के कारण। उनसे बात हो रही थी इस सन्दर्भ में। मैंने कहा कि हर इंसान अपने चुने हुए रास्ते पर सफर करता है। और अंत में जो होता है ,अच्छा ही होता है। रीता जी ने मेरी सोच ठीक कर दी। उन्होंने कहा -रास्ता हमने नहीं चुना है ;ऊपर वाले ने हमारे लिए चुना है। और उनके लिए हम सब एक हैं। धन्यवाद रीता जी मेरे जीवन का मार्ग दर्शन को नई दिशा देने के लिए। आपका मैं आभारी रहूँगा।
 इन दिनों रीता जी की तरह कई लोगों ने अपने सोच से मुझे प्रभावित किया है ,ज़िन्दगी को नए अंदाज़ में जीने के लिए। उन सबके विषय में लिखूँगा आगे के सफर में. साथ निभाईएगा हमारा ?


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